Bashir Badr Ghazals And Shayari
- Raat Ke Saath Raat Leti Thi – Bashir Badr
- In Aankhon Se Din-Raat Barsaat Hogi – Bashir badr
- Phool Sa Kuch Kalaam Aur Sahi – Bashir Badr
- Sar Jhukaoge To Patthar Devata Ho Jayega – Bashir Badr
- Log Toot Jate Hain Ek Ghar Banane Mein – Bashir Badr
- Wo Ghar Bhi Koi Ghar Hai Jahan Bachhiyaan Na Ho – Bashir Badr
- Koi Phool Dhoop Ki Pattiyon Mein – Bashir Badr
- Dil ki dehleez pe yaadon ke diye rakkhe hain – Bashir Badr
- Kaun Aaya Raaste Aaina Khane Ho Gaye – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Ek Chehra Sath Sath Raha Jo Mila Nahi – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Jahan Ped Par Chaar Daane Lage – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Na Jee Bhar Ke Dekha Na Kuch Baat Ki – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Raat Ik Khwaab Humne Dekha Hai – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Khandani Rishton Mein Aksar Rakaabat Hai Bahut – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Ab Kise Chahe Kise Dhoondha Kare – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Har Janam Mein Usi Ki Chaahat The – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Koi Lashkar Hai Ke Badhte Hue Gham Aate hein – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Khwaab is aankhon se ab koi chura kar le jaye – Bashir Badr
- Guroor us pe bahut sajta hai magar keh do – Ghazal And Shayari
- Kisne Mujhko Sada Di Bata Kaun Hai? – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Adab ki had mein hoon Main – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Hansi Masoom Si Bachcho Ki – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
- Ab Tere Mere Beech Koi Faasla Bhi Ho – Bashir Badr | Ghazal And Shayari
Bashir Badr Ki Jeevan Parichay
बशीर बद्र का जन्म 15 फरवरी 1935 में श्रीरामजी की जन्मभूमि अयोध्या में हुआ। इनका पुरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है।इनके बेटे का नाम नुसरत बद्र है नुसरत बद्र भी बेहतरीन शायर और लिरिक्स राईटर हैं। बशीर बद्र साहब के पिता पुलिस विभाग(पुलिस महकमा) में लेखाकार थे। बशीर साहब की प्रारम्भिक शिक्षा-दिक्षा कानपुर से हुई और हाईस्कूल, इटावा से किया।
बशीर बद्र के घर में अगर कोई कमाने वाला था तो बस एक ही था उनके पिताजी। लेकिन समय के साथ वो समय समय पे बीमार रहने लगे जिसके कारण घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी। पिताजी के बिमार रहने के कारण बशीर साहब को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ गई। और UP पुलिस में नौकरी करने लगे, नौकरी के बाद बशीर बद्र ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बी.ए. की और एम.ए. गोल्ड मेडल के साथ किया और ‘आजादी के बाद उर्दू ग़ज़ल‘ विषय में पी.एच .डी की उपाधि भी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से प्राप्त की।
बशीर बद्र साहब को देख कर कोई ये नहीं कह सकता कभी पुलिस की नौकरी कर रहे बशीर साहब एक दिन मोहब्बत के मशहूर शायर बन जाएंगे। शायद तभी उन्होंने ये लिखा होगा:
मैं कागज़ की तक़दीर पहचानता हूँ
सिपाही को आता है तलवार पढ़ना
बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे जो अपनी लिखी हुई कविताएं/रचनाएं अपने पाठ्यक्रम में पढ़ाई या पढ़ी होगी। बशीर बद्र मेरठ कॉलेज, मेरठ में प्राध्यापक और हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट के रूप में 17 वर्षों तक कार्य किया।
बशीर बद्र साहब की शायरी इतने आसान लहजों में होती है की कोई आम आदमी भी बड़े आराम से शब्दकोश के बिना ही पढ़ सकता है और समझ सकता है बिना किसी मुश्किल के।
उन्होंने उर्दू और हिंदी में कविता संग्रह लिखी जो बहुत प्रसिद्ध हुई। और उन्हें मोहब्बत और सौंदर्य के शायर का बेताज बादशाह बना दिया। उनकी उर्दू में प्रसिद्ध कविता संग्रह ‘कुल्लियते बशीर बद्र’ और साहित्यिक आलोचना की 2 पुस्तकें ‘आजादी के बाद उर्दू ग़ज़ल‘ और ‘बीसवीं सदी में ग़ज़ल’ है। उन्होंने देवनागरी लिपि में उर्दू ग़ज़लों का एक संग्रह भी निकाला, जिसका शीर्षक है ‘उजाले आप याद करो‘। उनकी ग़ज़लों के संग्रह गुजराती लिपि में भी प्रकाशित हुए हैं। इनकी कुछ ग़ज़ल-संग्रह ‘आस’, ‘उजालों की परियाँ’, ‘रोशनी के घरौंदे’, ‘सात जमीनें एक सितारा’, ‘फूलों की छतरियाँ’, ‘मुहब्बत खुशबू है’ हिंदी में भी है। बशीर बद्र को कविता संग्रह ‘आस’ के लिए उर्दू का साहित्य अकादमी अवार्ड्स मिला। उनकी रचनाओं का अंग्रेजी और फ्रेंच में अनुवाद किया गया है।
1999 में पद्मश्री पुरस्कार और उर्दू के साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया है। उन्हें यूपी उर्दू अकादमी द्वारा 4 बार और बिहार उर्दू अकादमी द्वारा एक बार सम्मानित किया गया है। उन्हें मीर एकेडमी अवार्ड, कवि ऑफ़ द ईयर न्यू यॉर्क, आदि से सम्मानित किया गया है।
मोहब्बत के शायर बशीर बद्र साहब जहां मुशायरा पढ़ने जाते थे वहां लोगों के दिलों में बस जाते थे। 1984 में मेरठ में दंगा भड़का और भड़के दंगाइयों ने बशीर बद्र साहब का पूरा घर जला डाला। इस घटना के कारण बशीर साहब पुरी तरह से टूट गए और इस दर्द से गुजरते हुए उन्होंने लिखा:
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
अभी इस दर्द से उभरे भी नहीं थे अच्छे से की एक दुःखद घटना और घट गई बशीर साहब की पत्नी का निधन हो गया और वो डिप्रेशन के शिकार हो गए। इन सब से बशीर साहब को बहुत आघात हुआ और वो मेरठ छोड़ के भोपाल चले गए और वहीं रहने लगे।
इतना कुछ हो जाने के बाद भी बशीर साहब अमन और शांति की बातें करते रहे। अपने तकलीफों को भुलकर वो दरार पड़े रिश्तों को फिर जोड़ने में लगे रहते।
बशीर बद्र साहब का स्वभाव सहज और सरल है। किसी भी फनकार के लिए मौत से भी बदतर है उसके फन(कला) का चले जाना। बशीर साहब लोगों के दिल में बसे हुए थे और उनके दिल में शायरी और ग़ज़लें बसी हुई थी सन् 2000 में दिन पर दिन अस्वस्थ होने के कारण वो मुशायरा से दुर होते गए और अपना लिखा हुआ भी भूलने लगे। बशीर बद्र साहब को इसका एहसास हो गया होगा और शायद तभी ये लिखा होगा:
मेरी हँसी से उदासी के फूल खिलते हैं
मैं सब के साथ हूँ लेकिन जुदा सा लगता हूँ।